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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
148 | 2 | 141 | تلك أمة قد خلت لها ما كسبت ولكم ما كسبتم ولا تسألون عما كانوا يعملون |
| | | ये वह लोग थे जो सिधार चुके जो कुछ कमा गए उनके लिए था और जो कुछ तुम कमाओगे तुम्हारे लिए होगा और जो कुछ वह कर गुज़रे उसकी पूछगछ तुमसे न होगी |
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149 | 2 | 142 | سيقول السفهاء من الناس ما ولاهم عن قبلتهم التي كانوا عليها قل لله المشرق والمغرب يهدي من يشاء إلى صراط مستقيم |
| | | बाज़ अहमक़ लोग ये कह बैठेगें कि मुसलमान जिस क़िबले बैतुल मुक़द्दस की तरफ पहले से सजदा करते थे उस से दूसरे क़िबले की तरफ मुड़ जाने का बाइस हुआ। ऐ रसूल तुम उनके जवाब में कहो कि पूरब पश्चिम सब ख़ुदा का है जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत करता है |
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150 | 2 | 143 | وكذلك جعلناكم أمة وسطا لتكونوا شهداء على الناس ويكون الرسول عليكم شهيدا وما جعلنا القبلة التي كنت عليها إلا لنعلم من يتبع الرسول ممن ينقلب على عقبيه وإن كانت لكبيرة إلا على الذين هدى الله وما كان الله ليضيع إيمانكم إن الله بالناس لرءوف رحيم |
| | | और जिस तरह तुम्हारे क़िबले के बारे में हिदायत की उसी तरह तुम को आदिल उम्मत बनाया ताकि और लोगों के मुक़ाबले में तुम गवाह बनो और रसूल मोहम्मद तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बनें और (ऐ रसूल) जिस क़िबले की तरफ़ तुम पहले सज़दा करते थे हम ने उसको को सिर्फ इस वजह से क़िबला क़रार दिया था कि जब क़िबला बदला जाए तो हम उन लोगों को जो रसूल की पैरवी करते हैं हम उन लोगों से अलग देख लें जो उलटे पाव फिरते हैं अगरचे ये उलट फेर सिवा उन लोगों के जिन की ख़ुदा ने हिदायत की है सब पर शाक़ ज़रुर है और ख़ुदा ऐसा नहीं है कि तुम्हारे ईमान नमाज़ को जो बैतुलमुक़द्दस की तरफ पढ़ चुके हो बरबाद कर दे बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा ही रफ़ीक व मेहरबान है। |
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151 | 2 | 144 | قد نرى تقلب وجهك في السماء فلنولينك قبلة ترضاها فول وجهك شطر المسجد الحرام وحيث ما كنتم فولوا وجوهكم شطره وإن الذين أوتوا الكتاب ليعلمون أنه الحق من ربهم وما الله بغافل عما يعملون |
| | | ऐ रसूल क़िबला बदलने के वास्ते बेशक तुम्हारा बार बार आसमान की तरफ मुँह करना हम देख रहे हैं तो हम ज़रुर तुम को ऐसे क़िबले की तरफ फेर देगें कि तुम निहाल हो जाओ अच्छा तो नमाज़ ही में तुम मस्ज़िदे मोहतरम काबे की तरफ मुँह कर लो और ऐ मुसलमानों तुम जहाँ कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मुँह कर लिया करो और जिन लोगों को किताब तौरेत वगैरह दी गयी है वह बख़ूबी जानते हैं कि ये तबदील क़िबले बहुत बजा व दुरुस्त है और उस के परवरदिगार की तरफ़ से है और जो कुछ वह लोग करते हैं उस से ख़ुदा बेख़बर नही |
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152 | 2 | 145 | ولئن أتيت الذين أوتوا الكتاب بكل آية ما تبعوا قبلتك وما أنت بتابع قبلتهم وما بعضهم بتابع قبلة بعض ولئن اتبعت أهواءهم من بعد ما جاءك من العلم إنك إذا لمن الظالمين |
| | | और अगर अहले किताब के सामने दुनिया की सारी दलीले पेश कर दोगे तो भी वह तुम्हारे क़िबले को न मानेंगें और न तुम ही उनके क़िबले को मानने वाले हो और ख़ुद अहले किताब भी एक दूसरे के क़िबले को नहीं मानते और जो इल्म क़ुरान तुम्हारे पास आ चुका है उसके बाद भी अगर तुम उनकी ख्वाहिश पर चले तो अलबत्ता तुम नाफ़रमान हो जाओगे |
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153 | 2 | 146 | الذين آتيناهم الكتاب يعرفونه كما يعرفون أبناءهم وإن فريقا منهم ليكتمون الحق وهم يعلمون |
| | | जिन लोगों को हमने किताब (तौरैत वग़ैरह) दी है वह जिस तरह अपने बेटों को पहचानते है उसी तरह तरह वह उस पैग़म्बर को भी पहचानते हैं और उन में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो दीदए व दानिस्ता (जान बुझकर) हक़ बात को छिपाते हैं |
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154 | 2 | 147 | الحق من ربك فلا تكونن من الممترين |
| | | ऐ रसूल तबदीले क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है पस तुम कहीं शक करने वालों में से न हो जाना |
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155 | 2 | 148 | ولكل وجهة هو موليها فاستبقوا الخيرات أين ما تكونوا يأت بكم الله جميعا إن الله على كل شيء قدير |
| | | और हर फरीक़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ वह नमाज़ में अपना मुँह कर लेता है पस तुम ऐ मुसलमानों झगड़े को छोड़ दो और नेकियों मे उन से लपक के आगे बढ़ जाओ तुम जहाँ कहीं होगे ख़ुदा तुम सबको अपनी तरफ ले आऐगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है |
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156 | 2 | 149 | ومن حيث خرجت فول وجهك شطر المسجد الحرام وإنه للحق من ربك وما الله بغافل عما تعملون |
| | | और (ऐ रसूल) तुम जहाँ से जाओ (यहाँ तक मक्का से) तो भी नमाज़ मे तुम अपना मुँह मस्ज़िदे मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर लिया करो और बेशक ये नया क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है |
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157 | 2 | 150 | ومن حيث خرجت فول وجهك شطر المسجد الحرام وحيث ما كنتم فولوا وجوهكم شطره لئلا يكون للناس عليكم حجة إلا الذين ظلموا منهم فلا تخشوهم واخشوني ولأتم نعمتي عليكم ولعلكم تهتدون |
| | | और तुम्हारे कामों से ख़ुदा ग़ाफिल नही है और (ऐ रसूल) तुम जहाँ से जाओ (यहाँ तक के मक्का से तो भी) तुम (नमाज़ में) अपना मुँह मस्ज़िदे हराम की तरफ कर लिया करो और (ऐ रसूल) तुम जहाँ कही हुआ करो तो नमाज़ में अपना मुँह उसी काबा की तरफ़ कर लिया करो (बार बार हुक्म देने का एक फायदा ये है ताकि लोगों का इल्ज़ाम तुम पर न आने पाए मगर उन में से जो लोग नाहक़ हठधर्मी करते हैं वह तो ज़रुर इल्ज़ाम देगें) तो तुम लोग उनसे डरो नहीं और सिर्फ़ मुझसे डरो और (दूसरा फ़ायदा ये है) ताकि तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दूँ |
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