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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1467 | 10 | 103 | ثم ننجي رسلنا والذين آمنوا كذلك حقا علينا ننج المؤمنين |
| | | फिर (नुज़ूले अज़ाब के वक्त) हम अपने रसूलों को और जो लोग ईमान लाए उनको (अज़ाब से) तलूउ बचा लेते हैं यूँ ही हम पर लाज़िम है कि हम ईमान लाने वालों को भी बचा लें |
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1468 | 10 | 104 | قل يا أيها الناس إن كنتم في شك من ديني فلا أعبد الذين تعبدون من دون الله ولكن أعبد الله الذي يتوفاكم وأمرت أن أكون من المؤمنين |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर तुम लोग मेरे दीन के बारे में शक़ में पड़े हो तो (मैं भी तुमसे साफ कहें देता हूँ) ख़ुदा के सिवा तुम भी जिन लोगों की परसतिश करते हो मै तो उनकी परसतिश नहीं करने का मगर (हाँ) मै उस ख़ुदा की इबादत करता हूँ जो तुम्हें (अपनी कुदरत से दुनिया से) उठा लेगा और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मोमिन हूँ |
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1469 | 10 | 105 | وأن أقم وجهك للدين حنيفا ولا تكونن من المشركين |
| | | और (मुझे) ये भी (हुक्म है) कि (बातिल) से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ कायम रख और मुशरेकीन से हरगिज़ न होना |
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1470 | 10 | 106 | ولا تدع من دون الله ما لا ينفعك ولا يضرك فإن فعلت فإنك إذا من الظالمين |
| | | और ख़ुदा को छोड़ ऐसी चीज़ को पुकारना जो न तुझे नफा ही पहुँचा सकती हैं न नुक़सान ही पहुँचा सकती है तो अगर तुमने (कहीं ऐसा) किया तो उस वक्त तुम भी ज़ालिमों में (शुमार) होगें |
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1471 | 10 | 107 | وإن يمسسك الله بضر فلا كاشف له إلا هو وإن يردك بخير فلا راد لفضله يصيب به من يشاء من عباده وهو الغفور الرحيم |
| | | और (याद रखो कि) अगर ख़ुदा की तरफ से तुम्हें कोई बुराई छू भी गई तो फिर उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं होगा और अगर तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो फिर उसके फज़ल व करम का लपेटने वाला भी कोई नहीं वह अपने बन्दों में से जिसको चाहे फायदा पहुँचाएँ और वह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
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1472 | 10 | 108 | قل يا أيها الناس قد جاءكم الحق من ربكم فمن اهتدى فإنما يهتدي لنفسه ومن ضل فإنما يضل عليها وما أنا عليكم بوكيل |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ लोगों तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास हक़ (क़ुरान) आ चुका फिर जो शख़्स सीधी राह पर चलेगा तो वह सिर्फ अपने ही दम के लिए हिदायत एख्तेयार करेगा और जो गुमराही एख्तेयार करेगा वह तो भटक कर कुछ अपना ही खोएगा और मैं कुछ तुम्हारा ज़िम्मेदार तो हूँ नहीं |
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1473 | 10 | 109 | واتبع ما يوحى إليك واصبر حتى يحكم الله وهو خير الحاكمين |
| | | और (ऐ रसूल) तुम्हारे पास जो 'वही' भेजी जाती है तुम बस उसी की पैरवी करो और सब्र करो यहाँ तक कि ख़ुदा तुम्हारे और काफिरों के दरमियान फैसला फरमाए और वह तो तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है |
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1474 | 11 | 1 | بسم الله الرحمن الرحيم الر كتاب أحكمت آياته ثم فصلت من لدن حكيم خبير |
| | | अलिफ़ लाम रा - ये (क़ुरान) वह किताब है जिसकी आयते एक वाकिफ़कार हकीम की तरफ से (दलाएल से) खूब मुस्तहकिम (मज़बूत) कर दी गयीं |
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1475 | 11 | 2 | ألا تعبدوا إلا الله إنني لكم منه نذير وبشير |
| | | फिर तफ़सीलदार बयान कर दी गयी हैं ये कि ख़ुदा के सिवा किसी की परसतिश न करो मै तो उसकी तरफ से तुम्हें (अज़ाब से) डराने वाला और (बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी देने वाला (रसूल) हूँ |
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1476 | 11 | 3 | وأن استغفروا ربكم ثم توبوا إليه يمتعكم متاعا حسنا إلى أجل مسمى ويؤت كل ذي فضل فضله وإن تولوا فإني أخاف عليكم عذاب يوم كبير |
| | | और ये भी कि अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में (गुनाहों से) तौबा करो वही तुम्हें एक मुकर्रर मुद्दत तक अच्छे नुत्फ के फायदे उठाने देगा और वही हर साहबे बुर्ज़गी को उसकी बुर्जुगी (की दाद) अता फरमाएगा और अगर तुमने (उसके हुक्म से) मुँह मोड़ा तो मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े (ख़ौफनाक) दिन के अज़ाब का डर है |
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