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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1462 | 10 | 98 | فلولا كانت قرية آمنت فنفعها إيمانها إلا قوم يونس لما آمنوا كشفنا عنهم عذاب الخزي في الحياة الدنيا ومتعناهم إلى حين |
| | | फिर ऐसी कोई बस्ती क्यों न हुई कि वह ईमान लाती और उसका ईमान उसके लिए लाभप्रद सिद्ध होता? हाँ, यूनुस की क़ौम के लोग इसके लिए अपवाद है। जब वे ईमान लाए तो हमने सांसारिक जीवन में अपमानजनक यातना को उनपर से टाल दिया और उन्हें एक अवधि तक सुखोपभोग का अवसर प्रदान किया |
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1463 | 10 | 99 | ولو شاء ربك لآمن من في الأرض كلهم جميعا أفأنت تكره الناس حتى يكونوا مؤمنين |
| | | यदि तुम्हारा रब चाहता तो धरती में जितने लोग है वे सब के सब ईमान ले आते, फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे मोमिन हो जाएँ? |
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1464 | 10 | 100 | وما كان لنفس أن تؤمن إلا بإذن الله ويجعل الرجس على الذين لا يعقلون |
| | | हालाँकि किसी व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं कि अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई क्यक्ति ईमान लाए। वह तो उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते |
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1465 | 10 | 101 | قل انظروا ماذا في السماوات والأرض وما تغني الآيات والنذر عن قوم لا يؤمنون |
| | | कहो, "देख लो, आकाशों और धरती में क्या कुछ है!" किन्तु निशानियाँ और चेतावनियाँ उन लोगों के कुछ काम नहीं आती, जो ईमान न लाना चाहें |
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1466 | 10 | 102 | فهل ينتظرون إلا مثل أيام الذين خلوا من قبلهم قل فانتظروا إني معكم من المنتظرين |
| | | अतः वे तो उस तरह के दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिस तरह के दिन वे लोग देख चुके है जो उनसे पहले गुज़रे है। कह दो, "अच्छा, प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।" |
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1467 | 10 | 103 | ثم ننجي رسلنا والذين آمنوا كذلك حقا علينا ننج المؤمنين |
| | | फिर हम अपने रसूलों और उन लोगों को बचा लेते रहे हैं, जो ईमान ले आए। ऐसी ही हमारी रीति है, हमपर यह हक़ है कि ईमानवालों को बचा लें |
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1468 | 10 | 104 | قل يا أيها الناس إن كنتم في شك من ديني فلا أعبد الذين تعبدون من دون الله ولكن أعبد الله الذي يتوفاكم وأمرت أن أكون من المؤمنين |
| | | कह दो, "ऐ लोगों! यदि तुम मेरे धर्म के विषय में किसी सन्देह में हो तो मैं तो उनकी बन्दगी नहीं करता जिनकी तुम अल्लाह से हटकर बन्दगी करते हो, बल्कि मैं उस अल्लाह की बन्दगी करता हूँ जो तुम्हें मृत्यु देता है। और मुझे आदेश है कि मैं ईमानवालों में से होऊँ |
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1469 | 10 | 105 | وأن أقم وجهك للدين حنيفا ولا تكونن من المشركين |
| | | और यह कि हर ओर से एकाग्र होकर अपना रुख़ इस धर्म की ओर कर लो और मुशरिक़ों में कदापि सम्मिलित न हो, |
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1470 | 10 | 106 | ولا تدع من دون الله ما لا ينفعك ولا يضرك فإن فعلت فإنك إذا من الظالمين |
| | | और अल्लाह से हटकर उसे न पुकारो जो न तुम्हें लाभ पहुँचाए और न तुम्हें हानि पहुँचा सके और न तुम्हारा बुरा कर सके, क्योंकि यदि तुमने ऐसा किया तो उस समय तुम अत्याचारी होगे |
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1471 | 10 | 107 | وإن يمسسك الله بضر فلا كاشف له إلا هو وإن يردك بخير فلا راد لفضله يصيب به من يشاء من عباده وهو الغفور الرحيم |
| | | यदि अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में डाल दे तो उसके सिवा कोई उसे दूर करनेवाला नहीं। और यदि वह तुम्हारे लिए किसी भलाई का इरादा कर ले तो कोई उसके अनुग्रह को फेरनेवाला भी नहीं। वह इसे अपने बन्दों में से जिस तक चाहता है, पहुँचाता है और वह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।" |
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