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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1413 | 10 | 49 | قل لا أملك لنفسي ضرا ولا نفعا إلا ما شاء الله لكل أمة أجل إذا جاء أجلهم فلا يستأخرون ساعة ولا يستقدمون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै खुद अपने वास्ते नुकसान पर क़ादिर हूँ न नफा पर मगर जो ख़ुदा चाहे हर उम्मत (के रहने) का (उसके इल्म में) एक वक्त मुक़र्रर है-जब उन का वक्त आ जाता है तो न एक घड़ी पीछे हट सकती हैं और न आगे बढ़ सकते हैं |
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1414 | 10 | 50 | قل أرأيتم إن أتاكم عذابه بياتا أو نهارا ماذا يستعجل منه المجرمون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम समझते हो कि अगर उसका अज़ाब तुम पर रात को या दिन को आ जाए तो (तुम क्या करोगे) फिर गुनाहगार लोग आख़िर काहे की जल्दी मचा रहे हैं |
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1415 | 10 | 51 | أثم إذا ما وقع آمنتم به آلآن وقد كنتم به تستعجلون |
| | | फिर क्या जब (तुम पर) आ चुकेगा तब उस पर ईमान लाओगे (आहा) क्या अब (ईमान लाए) हालॉकि तुम तो इसकी जल्दी मचाया करते थे |
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1416 | 10 | 52 | ثم قيل للذين ظلموا ذوقوا عذاب الخلد هل تجزون إلا بما كنتم تكسبون |
| | | फिर (क़यामत के दिन) ज़ालिम लोगों से कहा जाएगा कि (अब हमेशा के अज़ाब के मजे चखो (दुनिया में) जैसी तुम्हारी करतूतें तुम्हें (आख़िरत में) वैसा ही बदला दिया जाएगा |
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1417 | 10 | 53 | ويستنبئونك أحق هو قل إي وربي إنه لحق وما أنتم بمعجزين |
| | | (ऐ रसूल) तुम से लोग पूछतें हैं कि क्या (जो कुछ तुम कहते हो) वह सब ठीक है तुम कह दो (हाँ) अपने परवरदिगार की कसम ठीक है और तुम (ख़ुदा को) हरा नहीं सकते |
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1418 | 10 | 54 | ولو أن لكل نفس ظلمت ما في الأرض لافتدت به وأسروا الندامة لما رأوا العذاب وقضي بينهم بالقسط وهم لا يظلمون |
| | | और (दुनिया में) जिस जिसने (हमारी नाफरमानी कर के) ज़ुल्म किया है (क़यामत के दिन) अगर तमाम ख़ज़ाने जो जमीन में हैं उसे मिल जाएँ तो अपने गुनाह के बदले ज़रुर फिदया दे निकले और जब वह लोग अज़ाब को देखेगें तो इज़हारे निदामत करेगें (शर्मिंदा होंगे) और उनमें बाहम इन्साफ़ के साथ हुक्म दिया जाएगा और उन पर ज़र्रा (बराबर ज़ुल्म न किया जाएगा |
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1419 | 10 | 55 | ألا إن لله ما في السماوات والأرض ألا إن وعد الله حق ولكن أكثرهم لا يعلمون |
| | | आगाह रहो कि जो कुछ आसमानों में और ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है आग़ाह राहे कि ख़ुदा का वायदा यक़ीनी ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं |
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1420 | 10 | 56 | هو يحيي ويميت وإليه ترجعون |
| | | वही ज़िन्दा करता है और वही मारता है और तुम सब के सब उसी की तरफ लौटाए जाओगें |
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1421 | 10 | 57 | يا أيها الناس قد جاءتكم موعظة من ربكم وشفاء لما في الصدور وهدى ورحمة للمؤمنين |
| | | लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से नसीहत (किताबे ख़ुदा आ चुकी और जो (मरज़ शिर्क वगैरह) दिल में हैं उनकी दवा और ईमान वालों के लिए हिदायत और रहमत |
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1422 | 10 | 58 | قل بفضل الله وبرحمته فبذلك فليفرحوا هو خير مما يجمعون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ये क़ुरान) ख़ुदा के फज़ल व करम और उसकी रहमत से तुमको मिला है (ही) तो उन लोगों को इस पर खुश होना चाहिए |
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