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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1396 | 10 | 32 | فذلكم الله ربكم الحق فماذا بعد الحق إلا الضلال فأنى تصرفون |
| | | फिर वही ख़ुदा तो तुम्हारा सच्चा रब है फिर हक़ बात के बाद गुमराही के सिवा और क्या है फिर तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो |
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1397 | 10 | 33 | كذلك حقت كلمت ربك على الذين فسقوا أنهم لا يؤمنون |
| | | ये तुम्हारे परवरदिगार की बात बदचलन लोगों पर साबित होकर रही कि ये लोग हरगिज़ ईमान न लाएँगें |
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1398 | 10 | 34 | قل هل من شركائكم من يبدأ الخلق ثم يعيده قل الله يبدأ الخلق ثم يعيده فأنى تؤفكون |
| | | (ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि तुम ने जिन लोगों को (ख़ुदा का) शरीक बनाया है कोई भी ऐसा है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करे फिर उन को (मरने के बाद) दोबारा ज़िन्दा करे (तो क्या जवाब देगें) तुम्ही कहो कि ख़ुदा ही पहले भी पैदा करता है फिर वही दोबारा ज़िन्दा करता है तो किधर तुम उल्टे जा रहे हो |
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1399 | 10 | 35 | قل هل من شركائكم من يهدي إلى الحق قل الله يهدي للحق أفمن يهدي إلى الحق أحق أن يتبع أمن لا يهدي إلا أن يهدى فما لكم كيف تحكمون |
| | | (ऐ रसूल उनसे) कहो तो कि तुम्हारे (बनाए हुए) शरीकों में से कोई ऐसा भी है जो तुम्हें (दीन) हक़ की राह दिखा सके तुम ही कह दो कि (ख़ुदा) दीन की राह दिखाता है तो जो तुम्हे दीने हक़ की राह दिखाता है क्या वह ज्यादा हक़दार है कि उसके हुक्म की पैरवी की जाए या वह शख़्श जो (दूसरे) की हिदायत तो दर किनार खुद ही जब तक दूसरा उसको राह न दिखाए राह नही देख पाता तो तुम लोगों को क्या हो गया है |
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1400 | 10 | 36 | وما يتبع أكثرهم إلا ظنا إن الظن لا يغني من الحق شيئا إن الله عليم بما يفعلون |
| | | तुम कैसे हुक्म लगाते हो और उनमें के अक्सर तो बस अपने गुमान पर चलते हैं (हालॉकि) गुमान यक़ीन के मुक़ाबले में हरगिज़ कुछ भी काम नहीं आ सकता बेशक वह लोग जो कुछ (भी) कर रहे हैं खुदा उसे खूब जानता है |
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1401 | 10 | 37 | وما كان هذا القرآن أن يفترى من دون الله ولكن تصديق الذي بين يديه وتفصيل الكتاب لا ريب فيه من رب العالمين |
| | | और ये कुरान ऐसा नहीं कि खुदा के सिवा कोई और अपनी तरफ से झूठ मूठ बना डाले बल्कि (ये तो) जो (किताबें) पहले की उसके सामने मौजूद हैं उसकी तसदीक़ और (उन) किताबों की तफ़सील है उसमें कुछ भी शक़ नहीं कि ये सारे जहाँन के परवरदिगार की तरफ से है |
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1402 | 10 | 38 | أم يقولون افتراه قل فأتوا بسورة مثله وادعوا من استطعتم من دون الله إن كنتم صادقين |
| | | क्या ये लोग कहते हैं कि इसको रसूल ने खुद झूठ मूठ बना लिया है (ऐ रसूल) तुम कहो कि (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (भला) एक ही सूरा उसके बराबर का बना लाओ और ख़ुदा के सिवा जिसको तुम्हें (मदद के वास्ते) बुलाते बन पड़े बुला लो |
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1403 | 10 | 39 | بل كذبوا بما لم يحيطوا بعلمه ولما يأتهم تأويله كذلك كذب الذين من قبلهم فانظر كيف كان عاقبة الظالمين |
| | | (ये लोग लाते तो क्या) बल्कि (उलटे) जिसके जानने पर उनका हाथ न पहुँचा हो लगे उसको झुठलाने हालॉकि अभी तक उनके जेहन में उसके मायने नहीं आए इसी तरह उन लोगों ने भी झुठलाया था जो उनसे पहले थे-तब ज़रा ग़ौर तो करो कि (उन) ज़ालिमों का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ |
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1404 | 10 | 40 | ومنهم من يؤمن به ومنهم من لا يؤمن به وربك أعلم بالمفسدين |
| | | और उनमें से बाज़ तो ऐसे है कि इस कुरान पर आइन्दा ईमान लाएगें और बाज़ ऐसे हैं जो ईमान लाएगें ही नहीं |
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1405 | 10 | 41 | وإن كذبوك فقل لي عملي ولكم عملكم أنتم بريئون مما أعمل وأنا بريء مما تعملون |
| | | और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार फसादियों को खूब जानता है और अगर वह तुम्हे झुठलाए तो तुम कह दो कि हमारे लिए हमारी कार गुजारी है और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारस्तानी जो कुछ मै करता हूँ उसके तुम ज़िम्मेदार नहीं और जो कुछ तुम करते हो उससे मै बरी हूँ |
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