بسم الله الرحمن الرحيم

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ترتيب الآيةرقم السورةرقم الآيةالاية
13741010دعواهم فيها سبحانك اللهم وتحيتهم فيها سلام وآخر دعواهم أن الحمد لله رب العالمين
वहाँ उनकी पुकार यह होगी कि "महिमा है तेरी, ऐ अल्लाह!" और उनका पारस्परिक अभिवादन "सलाम" होगा। और उनकी पुकार का अन्त इसपर होगा कि "प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो सारे संसार का रब है।"
13751011ولو يعجل الله للناس الشر استعجالهم بالخير لقضي إليهم أجلهم فنذر الذين لا يرجون لقاءنا في طغيانهم يعمهون
यदि अल्लाह लोगों के लिए उनके जल्दी मचाने के कारण भलाई की जगह बुराई को शीघ्र घटित कर दे तो उनकी ओर उनकी अवधि पूरी कर दी जाए, किन्तु हम उन लोगों को जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते उनकी अपनी सरकशी में भटकने के लिए छोड़ देते है
13761012وإذا مس الإنسان الضر دعانا لجنبه أو قاعدا أو قائما فلما كشفنا عنه ضره مر كأن لم يدعنا إلى ضر مسه كذلك زين للمسرفين ما كانوا يعملون
मनुष्य को जब कोई तकलीफ़ पहुँचती है, वह लेटे या बैठे या खड़े हमको पुकारने लग जाता है। किन्तु जब हम उसकी तकलीफ़ उससे दूर कर देते है तो वह इस तरह चल देता है मानो कभी कोई तकलीफ़ पहुँचने पर उसने हमें पुकारा ही न था। इसी प्रकार मर्यादाहीन लोगों के लिए जो कुछ वे कर रहे है सुहावना बना दिया गया है
13771013ولقد أهلكنا القرون من قبلكم لما ظلموا وجاءتهم رسلهم بالبينات وما كانوا ليؤمنوا كذلك نجزي القوم المجرمين
तुमसे पहले कितनी ही नस्लों को, जब उन्होंने अत्याचार किया, हम विनष्ट कर चुके है, हालाँकि उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे। किन्तु वे ऐसे न थे कि उन्हें मानते। अपराधी लोगों को हम इसी प्रकार बदला दिया करते है
13781014ثم جعلناكم خلائف في الأرض من بعدهم لننظر كيف تعملون
फिर उनके पश्चात हमने धरती में उनकी जगह तुम्हें रखा, ताकि हम देखें कि तुम कैसे कर्म करते हो
13791015وإذا تتلى عليهم آياتنا بينات قال الذين لا يرجون لقاءنا ائت بقرآن غير هذا أو بدله قل ما يكون لي أن أبدله من تلقاء نفسي إن أتبع إلا ما يوحى إلي إني أخاف إن عصيت ربي عذاب يوم عظيم
और जब उनके सामने हमारी खुली हुई आयतें पढ़ी जाती है तो वे लोग, जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, कहते है, "इसके सिवा कोई और क़ुरआन ले आओ या इसमें कुछ परिवर्तन करो।" कह दो, "मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं अपनी ओर से इसमें कोई परिवर्तन करूँ। मैं तो बस उसका अनुपालन करता हूँ, जो प्रकाशना मेरी ओर अवतरित की जाती है। यदि मैं अपने प्रभु की अवज्ञा करँस तो इसमें मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।"
13801016قل لو شاء الله ما تلوته عليكم ولا أدراكم به فقد لبثت فيكم عمرا من قبله أفلا تعقلون
कह दो, "यदि अल्लाह चाहता तो मैं तुम्हें यह पढ़कर न सुनाता और न वह तुम्हें इससे अवगत कराता। आख़िर इससे पहले मैं तुम्हारे बीच जीवन की पूरी अवधि व्यतीत कर चुका हूँ। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?"
13811017فمن أظلم ممن افترى على الله كذبا أو كذب بآياته إنه لا يفلح المجرمون
फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े या उसकी आयतों को झुठलाए? निस्संदेह अपराधी कभी सफल नहीं होते
13821018ويعبدون من دون الله ما لا يضرهم ولا ينفعهم ويقولون هؤلاء شفعاؤنا عند الله قل أتنبئون الله بما لا يعلم في السماوات ولا في الأرض سبحانه وتعالى عما يشركون
वे लोग अल्लाह से हटकर उनको पूजते हैं, जो न उनका कुछ बिगाड़ सकें और न उनका कुछ भला कर सकें। और वे कहते है, "ये अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी है।" कह दो, "क्या तुम अल्लाह को उसकी ख़बर देनेवाले? हो, जिसका अस्तित्व न उसे आकाशों में ज्ञात है न धरती में" महिमावान है वह और उसकी उच्चता के प्रतिकूल है वह शिर्क, जो वे कर रहे है
13831019وما كان الناس إلا أمة واحدة فاختلفوا ولولا كلمة سبقت من ربك لقضي بينهم فيما فيه يختلفون
सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे। वे तो स्वयं अलग-अलग हो रहे। और यदि तेरे रब की ओर से पहले ही एक बात निश्चित न हो गई होती, तो उनके बीच का फ़ैसला कर दिया जाता जिसमें वे मतभेद कर रहे हैं


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