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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1284 | 9 | 49 | ومنهم من يقول ائذن لي ولا تفتني ألا في الفتنة سقطوا وإن جهنم لمحيطة بالكافرين |
| | | उन लोगों में से बाज़ ऐसे भी हैं जो साफ कहते हैं कि मुझे तो (पीछे रह जाने की) इजाज़त दीजिए और मुझ बला में न फॅसाइए (ऐ रसूल) आगाह हो कि ये लोग खुद बला में (औंधे मुँह) गिर पड़े और जहन्नुम तो काफिरों का यक़ीनन घेरे हुए ही हैं |
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1285 | 9 | 50 | إن تصبك حسنة تسؤهم وإن تصبك مصيبة يقولوا قد أخذنا أمرنا من قبل ويتولوا وهم فرحون |
| | | तुमको कोई फायदा पहुंचा तो उन को बुरा मालूम होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ती तो ये लोग कहते हैं कि (इस वजह से) हमने अपना काम पहले ही ठीक कर लिया था और (ये कह कर) ख़ुश (तुम्हारे पास से उठकर) वापस लौटतें है |
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1286 | 9 | 51 | قل لن يصيبنا إلا ما كتب الله لنا هو مولانا وعلى الله فليتوكل المؤمنون |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नही सकती मगर जो ख़ुदा ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है वही हमारा मालिक है और ईमानदारों को चाहिए भी कि ख़ुदा ही पर भरोसा रखें |
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1287 | 9 | 52 | قل هل تربصون بنا إلا إحدى الحسنيين ونحن نتربص بكم أن يصيبكم الله بعذاب من عنده أو بأيدينا فتربصوا إنا معكم متربصون |
| | | (ऐ रसूल) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे वास्ते (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के ख्वाह मख्वाह मुन्तज़िर ही हो और हम तुम्हारे वास्ते उसके मुन्तज़िर हैं कि ख़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई अज़ाब नाज़िल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं |
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1288 | 9 | 53 | قل أنفقوا طوعا أو كرها لن يتقبل منكم إنكم كنتم قوما فاسقين |
| | | (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग ख्वाह ख़ुशी से खर्च करो या मजबूरी से तुम्हारी ख़ैरात तो कभी कुबूल की नहीं जाएगी तुम यक़ीनन बदकार लोग हो |
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1289 | 9 | 54 | وما منعهم أن تقبل منهم نفقاتهم إلا أنهم كفروا بالله وبرسوله ولا يأتون الصلاة إلا وهم كسالى ولا ينفقون إلا وهم كارهون |
| | | और उनकी ख़ैरात के क़ुबूल किए जाने में और कोई वजह मायने नहीं मगर यही कि उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की और नमाज़ को आते भी हैं तो अलकसाए हुए और ख़ुदा की राह में खर्च करते भी हैं तो बे दिली से |
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1290 | 9 | 55 | فلا تعجبك أموالهم ولا أولادهم إنما يريد الله ليعذبهم بها في الحياة الدنيا وتزهق أنفسهم وهم كافرون |
| | | (ऐ रसूल) तुम को न तो उनके माल हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) ख़ुदा तो ये चाहता है कि उनको आल व माल की वजह से दुनिया की (चन्द रोज़) ज़िन्दगी (ही) में मुबितलाए अज़ाब करे और जब उनकी जानें निकलें तब भी वह काफिर (के काफिर ही) रहें |
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1291 | 9 | 56 | ويحلفون بالله إنهم لمنكم وما هم منكم ولكنهم قوم يفرقون |
| | | और (मुसलमानों) ये लोग ख़ुदा की क़सम खाएंगे फिर वह तुममें ही के हैं हालॉकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर हैं ये लोग बुज़दिल हैं |
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1292 | 9 | 57 | لو يجدون ملجأ أو مغارات أو مدخلا لولوا إليه وهم يجمحون |
| | | कि गर कहीं ये लोग पनाह की जगह (क़िले) या (छिपने के लिए) ग़ार या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाए तो उसी तरफ रस्सियाँ तोड़ाते हुए भाग जाएँ |
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1293 | 9 | 58 | ومنهم من يلمزك في الصدقات فإن أعطوا منها رضوا وإن لم يعطوا منها إذا هم يسخطون |
| | | (ऐ रसूल) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें ख़ैरात (की तक़सीम) में (ख्वाह मा ख्वाह) इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (माक़ूल मिक़दार(हिस्सा)) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उनकी मर्ज़ी के मुवाफिक़ उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही बिगड़ बैठे |
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