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ترتيب الآية | رقم السورة | رقم الآية | الاية |
1026 | 7 | 72 | فأنجيناه والذين معه برحمة منا وقطعنا دابر الذين كذبوا بآياتنا وما كانوا مؤمنين |
| | | आख़िर हमने उनको और जो लोग उनके साथ थे उनको अपनी रहमत से नजात दी और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था हमने उनकी जड़ काट दी और वह लोग ईमान लाने वाले थे भी नहीं |
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1027 | 7 | 73 | وإلى ثمود أخاهم صالحا قال يا قوم اعبدوا الله ما لكم من إله غيره قد جاءتكم بينة من ربكم هذه ناقة الله لكم آية فذروها تأكل في أرض الله ولا تمسوها بسوء فيأخذكم عذاب أليم |
| | | और (हमने क़ौम) समूद की तरफ उनके भाई सालेह को रसूल बनाकर भेजा तो उन्होनें (उन लोगों से कहा) ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो और उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं है तुम्हारे पास तो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वाज़ेए और रौशन दलील आ चुकी है ये ख़ुदा की भेजी हुई ऊँटनी तुम्हारे वास्ते एक मौजिज़ा है तो तुम लोग उसको छोड़ दो कि ख़ुदा की ज़मीन में जहाँ चाहे चरती फिरे और उसे कोई तकलीफ़ ना पहुंचाओ वरना तुम दर्दनाक अज़ाब में गिरफ्तार हो जाआगे |
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1028 | 7 | 74 | واذكروا إذ جعلكم خلفاء من بعد عاد وبوأكم في الأرض تتخذون من سهولها قصورا وتنحتون الجبال بيوتا فاذكروا آلاء الله ولا تعثوا في الأرض مفسدين |
| | | और वह वक्त याद करो जब उसने तुमको क़ौम आद के बाद (ज़मीन में) ख़लीफा (व जानशीन) बनाया और तुम्हें ज़मीन में इस तरह बसाया कि तुम हमवार व नरम ज़मीन में (बड़े-बड़े) महल उठाते हो और पहाड़ों को तराश के घर बनाते हो तो ख़ुदा की नेअमतों को याद करो और रूए ज़मीन में फसाद न करते फिरो |
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1029 | 7 | 75 | قال الملأ الذين استكبروا من قومه للذين استضعفوا لمن آمن منهم أتعلمون أن صالحا مرسل من ربه قالوا إنا بما أرسل به مؤمنون |
| | | तो उसकी क़ौम के बड़े बड़े लोगों ने बेचारें ग़रीबों से उनमें से जो ईमान लाए थे कहा क्या तुम्हें मालूम है कि सालेह (हक़ीकतन) अपने परवरदिगार के सच्चे रसूल हैं - उन बेचारों ने जवाब दिया कि जिन बातों का वह पैग़ाम लाए हैं हमारा तो उस पर ईमान है |
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1030 | 7 | 76 | قال الذين استكبروا إنا بالذي آمنتم به كافرون |
| | | तब जिन लोगों को (अपनी दौलत दुनिया पर) घमन्ड था कहने लगे हम तो जिस पर तुम ईमान लाए हो उसे नहीं मानते |
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1031 | 7 | 77 | فعقروا الناقة وعتوا عن أمر ربهم وقالوا يا صالح ائتنا بما تعدنا إن كنت من المرسلين |
| | | ग़रज़ उन लोगों ने ऊँटनी के कूचें और पैर काट डाले और अपने परवरदिगार के हुक्म से सरताबी की और (बेबाकी से) कहने लगे अगर तुम सच्चे रसूल हो तो जिस (अज़ाब) से हम लोगों को डराते थे अब लाओ |
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1032 | 7 | 78 | فأخذتهم الرجفة فأصبحوا في دارهم جاثمين |
| | | तब उन्हें ज़लज़ले ने ले डाला और वह लोग ज़ानू पर सर किए (जिस तरह) बैठे थे बैठे के बैठे रह गए |
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1033 | 7 | 79 | فتولى عنهم وقال يا قوم لقد أبلغتكم رسالة ربي ونصحت لكم ولكن لا تحبون الناصحين |
| | | उसके बाद सालेह उनसे टल गए और (उनसे मुख़ातिब होकर) कहा मेरी क़ौम (आह) मैनें तो अपने परवरदिगार के पैग़ाम तुम तक पहुचा दिए थे और तुम्हारे ख़ैरख्वाही की थी (और ऊँच नीच समझा दिया था) मगर अफसोस तुम (ख़ैरख्वाह) समझाने वालों को अपना दोस्त ही नहीं समझते |
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1034 | 7 | 80 | ولوطا إذ قال لقومه أتأتون الفاحشة ما سبقكم بها من أحد من العالمين |
| | | और (लूत को हमने रसूल बनाकर भेजा था) जब उन्होनें अपनी क़ौम से कहा कि (अफसोस) तुम ऐसी बदकारी (अग़लाम) करते हो कि तुमसे पहले सारी ख़ुदाई में किसी ने ऐसी बदकारी नहीं की थी |
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1035 | 7 | 81 | إنكم لتأتون الرجال شهوة من دون النساء بل أنتم قوم مسرفون |
| | | हाँ तुम औरतों को छोड़कर शहवत परस्ती के वास्ते मर्दों की तरफ माएल होते हो (हालाकि उसकी ज़रूरत नहीं) मगर तुम लोग कुछ हो ही बेहूदा |
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